कुछ बातें आधारभूत रूप से असंभव हैं। जैसे राजनीति में अच्छे और बुद्धिमान व्यक्ति का टिक पाना। लगभग 4% लोग ही बुद्धिमान, अच्छे व राजनीति से दूर होते हैं और बाकी के लोग अपने जैसा नेता चुनते हैं। 😂 असल में, कम बुद्धिमान लोगों को ही दूसरों की ज्यादा ज़रूरत पड़ती है। इसीलिए राजनीति का जन्म हुआ। बुद्धिमान लोग हमेशा कम मेहनत वाले अपने कामो में लगे रहे और कम बुद्धि वाले लोग किसी न किसी धूर्त की सेवा करने में लगे रहे। आपको तो पता ही होगा कि दुनिया में जो व्यक्ति अपना नुकसान कर ले, उसे ही लोग अच्छा समझते हैं। लेकिन साथ ही उसे मूर्ख भी बोल कर उसका शोषण भी शुरू कर देते हैं। इसीलिए जो मूर्ख नहीं होता, धूर्त होता है, वही नेता बन पाता है और फिर अच्छे (मूर्ख) लोगों का शोषण शुरू कर देता है। 😂 राजनीति बुरी नहीं है, अगर इसे कम्प्यूटर चलाये। समस्या इंसान की धूर्तता, शासन करने की हवस, लालच, नफ़रत, और घमंड है। जो कभी खत्म नहीं हो सकता। इंसान का अस्तित्व ही इस बुराई के साथ है। इसीलिए अपनी अलग दुनिया बसाओ, आम जनजीवन से जितना दूर रह सकते हो, रहो। जीवन मे कुछ अच्छा और मनोरंजक करो। लोगों तक अपनी बात पहुँचा सकते हो
आस्तिक: ईश्वर से डरो, नहीं तो वह तुमको मार डालेगा।
शुभ: और अगर डरें तो क्या अमर हो जाएंगे?
आस्तिक: ईश्वर है, तुम एक दिन मानोगे।
शुभ: कब?
आस्तिक: जब तुम मरोगे।
शुभ: 😁 इंसान मरने से ही तो डरता है। मर ही गए तो क्या पाप और क्या पुण्य? और तुमको कैसे पता कि मरने के बाद क्या होगा? तुम मर गए क्या? 😂🤣
आस्तिक: कई लोग जो कुछ समय के लिए मर गए थे उन्होंने बताया।
शुभ: क्या वो आस्तिक थे?
आस्तिक: हाँ।
शुभ: तो वो जो कह रहे उसका क्या भरोसा? और ये बताओ ये मरने का नाटक करने वालों का सिर क्या धड़ से अलग हो गया था और वो जीवित हुए?
आस्तिक: नहीं।
शुभ: नहीं न? दिल की धड़कनें रुकने का अर्थ मृत्यु नहीं है। मस्तिष्क की मृत्यु का अर्थ मृत्यु है। जिसे डॉक्टर ब्रेन डेथ बोलते हैं। जब तक ब्रेन डेड नहीं होता, कोई भी वापस जिंदा हो सकता है। एपिनेफरीन नाम का एक कृत्रिम एड्रीनलीन हॉरमोन है।
उसे दिल की धड़कन रुके हुए इंसान में लगाने से दिल वापस चालू हो जाता है और एलक्ट्रिक शॉक देने पर भी। होठों से होंठ लगा कर सांस देने से और छाती को एक लय में दबाने से भी। (सीपीआर) तो क्या इसे मृत्यु बोलोगे?
जब दिमाग ऑक्सीजन की कमी से अस्थायी या स्थायी कोमा में जा रहा होता है, तब एक गुफा में प्रकाश पुंज जैसी छवि बनती है। यह सभी के साथ होता है। इसका कोई अर्थ नहीं है। यह एक रैंडम अभिक्रिया है, मस्तिष्क के बन्द होने की।
कुछ लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार अपनी कल्पना से उस घटना को बदल लेते हैं और अपने-अपने धर्म की मान्यताओं के अनुसार ही कहानी सुनाते हैं। इससे पता चलता है कि यह उसकी ही कल्पनाओं का चित्रण है।
अब बताओ मरने के बाद क्या पता चलेगा?
आस्तिक: हमारा धंधा मत खराब कर। वरना जान से जाएगा।
शुभ: अब आये न लाइन पर। धंधा तो तुम्हारा बन्द होगा ही। क्योंकि अगर तुम जैसे दुकानदार या ठग न होते तो मानव ज्यादा सत्य के करीब होता और दुखी नहीं होता। क्योकि सबसे अधिक दुख समस्या से नहीं होता। समस्या खत्म हो जाने के दिलासे के पूरा न होने से होता है। धोखे से होता है। जाकर पूछो किसी महिला से, कि उसे अपने पति के थप्पड़ से ज्यादा दर्द हुआ या बिना थप्पड़ मारे, उसके दिए धोखे से। उसका जवाब ही मेरा जवाब है। इसीलिए धोखेबाजी मत करो। अन्यथा एक दिन ये भोले-भाले लोगों में से 'भोले' निकल जायेगा और सिर्फ 'भाले' रह जायेंगे। ~ Shubhanshu 2021©
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